बड़ी माँ
टूटे घर के चौखट पर
कब से बैठी थी ,
दीवारों पर वर्षों से
जो रंग चढ़ा था,
छप्पर से कई आसमान के
टुकड़े होकर
दीवारों का बोझ हमेशा
बढ़ा रहे थे
धूल सड़क से उठ उठ कर
हर शाम यहाँ के
दीवारों पर मैल की परतें
चढ़ा रहे थे।
कमरे की दीवार पर
एक तस्वीर लगी थी
देख देख कर जिसे हमेशा
आस जगी थी
कभी कभी तस्वीरें
जिन्दा हो जातीं हैं
जिन्दा लोगों से भी
बढ़कर हो जाती हैं।
पीछे देखा तो पाया
ये सफ़र था लम्बा,
सूने सड़क पे पेड़ नहीं थे
धूप भरी थी ;
चलते चलते थक जाते थे
आस के पंछी ,
फिर भी उनके माथे की
बिंदिया गहरी थी।
बिंदिया सा वो चाँद
न जाने कहाँ खो गया,
सतरंगी आँचल का
सारा रंग धो गया ;
लुटी हाथ से कुछ ऐसे
रंगों की झोली ,
कभी न आई जीवन में
फिर वैसी होली।
टूट रहे हैं अरमानों के
रोज हिंडोले,
किसके घर जाकर
वो दुख की गठरी खोले;
अपना था सो चला गया
जीवन का साथी
तेल बिना जलती है
जैसे दिए की बाती।
रात अँधेरे बढ़ा रहे हैं
छुपकर तारे ,
बड़े बड़े थे चाँद
जो घर के बाज़ी हारे;
आँखों ने भी जो अबतक था
दिया सहारा
धीरे धीरे धूमिल होता
मंज़र सारा।
नींद न जाने कब से
अपने चुरा ले गए,
जो भी था बाकी
घर में सब उड़ा ले गए;
कभी कभी जीवन में
ऐसी रात आती है ,
मौत न जाने रूठ
कहीं पर सो जाती है।
टूटे घर के चौखट पर
कब से बैठी थी ,
दीवारों पर वर्षों से
जो रंग चढ़ा था,
छप्पर से कई आसमान के
टुकड़े होकर
दीवारों का बोझ हमेशा
बढ़ा रहे थे
धूल सड़क से उठ उठ कर
हर शाम यहाँ के
दीवारों पर मैल की परतें
चढ़ा रहे थे।
कमरे की दीवार पर
एक तस्वीर लगी थी
देख देख कर जिसे हमेशा
आस जगी थी
कभी कभी तस्वीरें
जिन्दा हो जातीं हैं
जिन्दा लोगों से भी
बढ़कर हो जाती हैं।
पीछे देखा तो पाया
ये सफ़र था लम्बा,
सूने सड़क पे पेड़ नहीं थे
धूप भरी थी ;
चलते चलते थक जाते थे
आस के पंछी ,
फिर भी उनके माथे की
बिंदिया गहरी थी।
बिंदिया सा वो चाँद
न जाने कहाँ खो गया,
सतरंगी आँचल का
सारा रंग धो गया ;
लुटी हाथ से कुछ ऐसे
रंगों की झोली ,
कभी न आई जीवन में
फिर वैसी होली।
टूट रहे हैं अरमानों के
रोज हिंडोले,
किसके घर जाकर
वो दुख की गठरी खोले;
अपना था सो चला गया
जीवन का साथी
तेल बिना जलती है
जैसे दिए की बाती।
रात अँधेरे बढ़ा रहे हैं
छुपकर तारे ,
बड़े बड़े थे चाँद
जो घर के बाज़ी हारे;
आँखों ने भी जो अबतक था
दिया सहारा
धीरे धीरे धूमिल होता
मंज़र सारा।
नींद न जाने कब से
अपने चुरा ले गए,
जो भी था बाकी
घर में सब उड़ा ले गए;
कभी कभी जीवन में
ऐसी रात आती है ,
मौत न जाने रूठ
कहीं पर सो जाती है।